जी करता है इस नभ को मैं पेंग बढ़ाकर छूलूँ इंद्रधनुष के सतरंगी बेड़े में झूला झूलूँँ। जी करता है इस नभ को मैं पेंग बढ़ाकर छूलूँ इंद्रधनुष के सतरंगी बेड़े में झूला झू...
फिर बसन्त की आहट आई हर जगह फ्योंली मुस्काई फिर बसन्त की आहट आई हर जगह फ्योंली मुस्काई
प्रकृति और मनुष्य का साहचर्य प्रकृति और मनुष्य का साहचर्य
कोरोना महामारी को है हराना, तो अपनानी पड़ेगी ये तन्हाई। कोरोना महामारी को है हराना, तो अपनानी पड़ेगी ये तन्हाई।
बहुत हो चुकी छेड़खानी प्रकृति से कुछ तो खामियाजा चुकाना पड़ेगा, बहुत हो चुकी छेड़खानी प्रकृति से कुछ तो खामियाजा चुकाना पड़ेगा,
उस घर की चार दीवारों में गुज़रा मेरा बचपन, अक्सर मुझे याद आता है। सारे लम्हें समेट उस घर की चार दीवारों में गुज़रा मेरा बचपन, अक्सर मुझे याद आता है। सारे...